तिमनगढ़ के पारस पत्थर की असली कहानी | Timangarh Fort & Paras Patthar

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नमस्कार मित्रों। .. आपने उस सोने के अंडे देने वाली मुर्गी की कहानी तो जरूर सुनी होगी जिसे एक दिन उसका मालिक सभी अण्डों को एक साथ पा लेने के लालच में मार डालता है और इस कारण वह प्रतिदिन मिलने वाले सोने के अंडे से भी हाथ धो बैठता है।अब आप सोच रहे होंगे कि तिमनगढ़ का उस कहानी से क्या सम्बन्ध। दरअसल मैंने आपको इस कहानी की याद इसलिए दिलाई है क्योंकि तिमनगढ़ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। जो कि इस वीडियो के अंत तक आप खुद ही समझ जायेंगे।

दोस्तों ! तिमनगढ़ कोई सोना देने वाली मुर्गी तो नहीं लेकिन किसी भी धातु को सोना बनाने वाले अनदेखे और अनजान पारस पत्थर को पाने के लालच में इसके अपनों ने ही इसके स्वर्णिम गौरव की हत्या कर दी। और इसके बदले में उन्हें क्या मिला ? ये जानने के लिए आज मैं आपको ले चलता हूँ तिमनगढ़ के किले में।

तिमणगढ़

तिमणगढ़ राजस्थान के  करौली ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध दुर्ग है। यह किला हिण्डौनसिटी के पास मासलपुर तहसील में  है। इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण  1100 ई में करवाया गया था जिसे जल्द ही मुहम्मद गौरी ने नष्ट कर दिया। इस किले पर  1196 और 1244 ई.के बीच मुहम्मद गौरी का कब्जा था। 1244ई में यदुवंशी राजा तिमनपाल ने अपने पूर्वज द्वारा निर्मित इस किले को दोबारा बनवाकर इसका उद्धार किया ।राजा तिमनपाल के नाम पर ही इस किले का नाम तिमनगढ़ पड़ा।

नटनी का शाप

यहाँ बने मंदिरों की दीवारों, छतों और स्तंभों पर सुंदर ज्यामितीय कलाकारी से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि अपने समय में यह किला कितना सुंदर और वैभवशाली रहा होगा। 

लेकिन यह दुर्ग अधिक समय तक अपना अस्तित्व बचाकर नहीं रख सका। इसके उजड़ने के पीछे एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार इसे एक नटनी ने शाप दिया था। और इसी शाप के फलीभूत होने से यहाँ से सभी लोग पलायन कर गए और यह किला अपने समृद्धशाली कला के अपार भण्डार के साथ अकेला और वीरान रह गया। 

तिमनगढ़ की दुर्दशा

नटनी के शाप ने तो इसे केवल वीरान ही किया लेकिन कालान्तर में इसे उजाड़ा इसी के अपने लोगों ने। मेरी बात कुछ लोगों को बुरी लग सकती है लेकिन सच तो यही है।   इस किले की प्राचीन कलात्मक मूर्तियों, सिक्कों और अन्य संपदा को हड़पने के लिए नजदीकी गाँवों के ही कुछ लोगों ने इसे नष्ट कर दिया। किले को खोदकर, दीवारें तोड़कर, छतें गिराकर, आँगन फोड़कर जितना कुछ बंटोरा जा सकता था बंटोरकर उन बेशकीमती कला के नमूनों को कौड़ियों के भाव बेच दिया गया। यहाँ के एक निवासी ने बताया कि उन बहुमूल्य मूर्तियों को मात्र  20 – 20, 30-30 रु में बेचा गया था।  इस किले ने तस्करी का ऐसा भयावह मंजर देखा और सहा है जिसमें मात्र 20-20 रुपये  के लिए इसके कोने कोने को ढहा दिया गया।  और जब महकमा जागा तब तक काफी देर हो चुकी थी।

यदि इस विरासत को संरक्षण मिलता और इसकी ऐसी दुर्दशा नहीं की जाती तो इस क्षेत्र में पर्यटन का विकास होता साथ ही स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ते। जिससे इस क्षेत्र का विकास होता। लेकिन अब इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। क्योंकि चंद रुपयों के लालच में इसे सदा के लिए मिटा दिया गया है। अब अगर यहाँ कुछ शेष है तो वो है कुछ खंडहर और इस दुर्ग का धराशायी वैभव।

लोगों का मानना है कि आज भी इस किले में अष्ठधातु की प्राचीन मूर्तियों तथा मिट्टी की विशाल और छोटी मूर्तियों को इस किले के मंदिर के नीचे छुपाया गया है।

सागर झील और पारस पत्थर  

तिमनगढ़ किले की तलहटी में ही स्थित है सागर झील। लोगों का मानना है कि सागर झील के तल पर पारस पत्थर मौजूद है जिसके स्पर्श से कोई भी चीज सोने की हो सकती है।   कुछ लोग कहते हैं कि वह पारस पत्थर इस झील में है तो कुछ के अनुसार वह किले में कहीं है। और उसी पारस के लिए इस किले को खोद खोदकर देखा गया और इस तलाश में किले की सभी प्राचीन सम्पदाओं को लूटकर बेच दिया गया।  कैसी विडम्बना है एक पारस पत्थर जिसके बारे में यह तक कहना मुश्किल है कि उसका अस्तित्व है भी या नहीं। उस पारस पत्थर की लालसा में यहाँ के असली पारस, यहाँ की धरोहर को मिटा दिया गया। इस पारस पत्थर के बारे में आपके क्या विचार हैं कृपया कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। और कृपया स्वयं को वचन दें कि आप कभी भी किसी भी परिस्थिति में ऐसी किसी भी ऐतिहासिक विरासत को नुक्सान नहीं पहुंचाएंगे और यदि कोई ऐसा करता दिखेगा तो उसे भी जरूर रोकेंगे।

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