जमवा रामगढ जयपुर से 27 किलोमीटर दूर स्थित है। पहले यह स्थान मांच कहलाता था तथा यहां मीणा के सीहरा शाखा का राज था। नरवर के राजकुमार दूलहराय ने यहां के शासक नाथू मीणा को परास्त कर यहां अपना अधिकार स्थापित कर इस स्थान का नाम अपने पूर्वज भगवान राम के नाम पर रामगढ़ रखा। दूलहराय की कुलदेवी जमवाय माता ने मीणाओं से युद्ध में उसकी सहायता की थी इसलिए दूलहराय ने जहां उसे कुलदेवी ने दर्शन दिए थे वहीं पहाड़ी के नाके पर जमवाय माता का मंदिर बनवाया। अतः यह स्थान जमवा रामगढ़ के नाम से प्रसिद्द हुआ। जमवाय माता कछवाहों की कुलदेवी है। कालांतर में कछवाहों की राजधानी आमेर में स्थापित हो गई। कछवाहों के आमेर में तथा इस क्षेत्र पर आधिपत्य जमाने में जमवा रामगढ़ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रामगढ़ से आम्बेर के राजा मानसिंह प्रथम (अकबर का प्रमुख सेनापति) का एक शिलालेख प्राप्त हुआ है। यह शिलालेख पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में सुरक्षित है। इस शिलालेख से पता चलता है कि राजा मानसिंह ने ई. 1612 में रामगढ़ के किले का निर्माण करवाया। रामगढ़ में ऊंची पहाड़ी पर बना भग्न किला, विशाल बुर्जे तथा परकोटा, शिव मंदिर, बावड़ियां, राजप्रासाद और प्राचीन हवेलियों के भग्नावशेष दर्शनीय है। यहां स्थित दांत माता का मंदिर, अम्बिकेश्वर महादेव आदि अन्य स्मारक कछवाहों के इतिहास के साक्ष्य हैं।
रामगढ़ में 1982 के एशियाई खेलों की नौकायन प्रतियोगिताएं आयोजित की गई थी।
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