क्या ये बावड़ी एक ‘जिन’ ने बनाई है? | Chand Baoli and Harshad Mata Temple Abhaneri

3500 सीढ़ियों की एक विशाल बावड़ी। जिसके बारे में स्थानीय मान्यता है कि इसका निर्माण साधारण इंसानो ने नहीं बल्कि एक जिन्न ने किया है और वो भी एक ही रात में।  दोस्तों ये है राजस्थान में जयपुर (Jaipur) के पास आभानेरी (Abhaneri) गाँव में स्थित, भारत के कुछ विश्वप्रसिद्ध दर्शनीय स्थानों में से एक चाँद बावड़ी (Chand Baoli/Baori)।

कहाँ स्थित है ?

आभानेरी। ये गाँव जयपुर-आगरा NH-11 पर स्थित दौसा जिले के, सिकंदरा कस्बे से उत्तर की ओर 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस यात्रा में हमसे जुड़ने और भारत के तरह तरह के ख़ूबसूरत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रंगों को देखने के लिए कृपया हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें।

आभा नगरी अर्थात् यानी  चमकने वाला नगर, जिसे राजा चाँद ने बसाया था। कालान्तर में इसका नाम आभानगरी से आभानेरी में परिवर्तित हो गया।

यहाँ के दर्शनीय स्थान | Visiting Places of Abhaneri

यहाँ स्थित प्राचीन चाँद बावड़ी और हर्षद माता का मंदिर दर्शनीय है जिनसे हमें अपने प्राचीन हिन्दुस्थान की कलात्मकता का पता चलता है। और साथ ही पता चलता है इनसे जुड़ी कहावतों और कहानियों का।

चाँद बावड़ी | Chand Baoli / Chand Baori

चाँद बावड़ी को सीढ़ियों की भूलभुलैया भी कहा जाता है। कहते हैं  कि जिन सीढ़ियों का इस्तेमाल आप यहाँ नीचे उतरने में करते हैं वापस उन्हीं सीढ़ियों से आपका ऊपर आना बहुत मुश्किल है, क्योंकि एक समान संरचना वाली इन हजारों सीढ़ियों के बीच यहाँ उतरने वाले व्यक्ति भ्रमित हो जाते हैं और लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें ध्यान ही नहीं रहता कि वे कौनसी सीढ़ियों से नीचे आये थे। ये भी कहा जाता है कि यहाँ लोगों को भ्रमित करने वाला कोई और नहीं बल्कि  वही जिन्न है जो आज भी अपनी इसी बावड़ी में रहता है।

चाँद बावड़ी की ख़ूबसूरती 

इस मान्यता से थोड़ा अलग होकर देखा जाये तो जिस ख़ूबसूरती और परफेक्शन के साथ इसे बनाया गया है  लगता है कि इसे बनाने वाले लोग अगर जादुई शक्तियों वाले जिन्न नहीं तो उससे कम भी नहीं होंगे, क्योंकि ऐसे कुशल कारीगरों के हाथों से  भले ही करामाती रोशनी ना निकलती हो पर उनके हाथों में जादू तो जरूर था। जिनकी कारीगरी ने ही इस बावड़ी को विश्व की सबसे बड़ी, गहरी  और कलात्मक बावड़ी होने का सम्मान दिलाया है।

दोस्तों चाँद बावड़ी को हिन्दुस्थान की सबसे सुन्दर बावड़ी कहा जा सकता है। यह बावड़ी १३ तल गहरी है। बावड़ी के अंदर , जल की सतह तक पहुँचती सीड़ियों की, जो एक समान त्रिकोणीय संरचना बनी है उसे देखकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे।

इस नगरी की पहचान है ये बावड़ी। राजस्थान चूँकि एक सूखा रेगिस्तानी प्रदेश रहा है इसलिए यहाँ बावड़ियों का निर्माण सामान्य है। बावड़ी जल प्रबंधन के लिए बहुत ही अच्छी प्रणाली होने के साथ साथ गर्मियों में वातावरण को शीतल भी बनाती है।
लेकिन जिस कलात्मकता के साथ इन प्राचीन बावड़ियों का निर्माण किया गया वो इन्हें दर्शनीय तो बनाता ही है साथ ही इन  साधारण सी सार्वजनिक संरचनाओं में भी वास्तुशिल्प की  इतनी कलात्मकता यह दिखाता है कि उस युग में हमारा हिन्दुस्थान विश्व के पटल पर मणि के समान चमकता होगा।

Chand Baoli in Movies

भूलभुलैया से याद आया कि आपको ये जगह जानी पहचानी लग रही होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर आपने बॉलीवुड और हॉलीवुड की कुछ फ़िल्में जैसे बॉलीवुड की भूल भुलैया, भूमि,और पहेली तथा हॉलीवुड की , the फॉल, और बैटमैन सीरीज की the dark night rises देखी हैं तो आपको उन फिल्मों में दिखाई गई ये लोकेशन भी बहुत पसंद आई होगी।

  
चाँद बावड़ी के परिसर में प्रवेश करते ही एक सुन्दर उद्यान आता है। जहाँ एक चबूतरे पर शिवलिंग विराजमान है। यहीं मुख्य द्वार के पास ही रखी शिलाओं पर चाँद बावड़ी का इतिहास लिखा है। बावड़ी के बाहर ही बाईं ओर टिकट काउंटर बना है। बावड़ी में प्रवेश करते  बाईं ओर एक मंदिर बना है।

चाँद बावड़ी का इतिहास | History of Chand Baoli

आभानेरी की चाँद बावड़ी को भारत की सभी बावड़ियों का सिरमौर कहना गलत नहीं होगा। क्योंकि चाँद बावड़ी ना केवल राजस्थान  की तथा कदाचित सम्पूर्ण भारत की प्राचीनतम बावड़ी है जो अब भी सजीव है। इस बावड़ी का निर्माण निकुम्भ वंश के राजा चाँद ने ८वी से ९वी शताब्दी में करवाया था। यानी १२०० से १३०० साल पुरानी यह संरचना ताजमहल, खजुराहो के मंदिर तथा चोल मंदिरों से भी प्राचीन हैं। राजा चाँद के नाम पर ही इस बावड़ी को चाँद बावड़ी कहा जाता है। 
विश्व की सबसे गहरी यह बावडी चारों ओर से लगभग 35 मीटर चौडी है तथा इस बावडी में ऊपर से नीचे तक पक्की सीढियाँ बनी हुई हैं, जिससे पानी का स्तर चाहे कितना ही हो, इसमें से आसानी से पानी भरा जा सकता है। 13 मंजिला यह बावडी 70 फ़ीट से भी ज्यादा गहरी है, जिसमें भूलभुलैया के रूप में 1300 सीढियाँ हैं। सीढ़ियों की ये ऐसी भूल भुलैया है कि कोई व्यक्ति  जिन सीढ़ियों से नीचे उतरता है वो उन्हीं सीढ़ियों से वापस ऊपर नहीं आ सकता।

चाँदनी रात में एकदम दूधिया सफ़ेद रंग की तरह दिखाई देने वाली यह बावडी अँधेरे-उजाले की बावडी नाम से भी प्रसिद्ध है। 13 मंजिला इस बावडी में नृत्य कक्ष और एक  गुप्त सुरंग बनी हुई है। बावडी की सुरंग के बारे में भी ऐसा सुनने में आता है कि इसका उपयोग युद्ध या अन्य आपातकालीन परिस्थितियों के समय राजा या सैनिकों द्वारा किया जाता था।

स्तम्भयुक्त बरामदों से घिरी हुई यह बावडी चारों ओर से वर्गाकार है। इसकी सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों पर महिसासुर मर्दिनी एवं गणेश जी की सुंदर मूर्तियाँ भी इसे खास बनाती हैं।  कुछ साल पहले हुई इस बावडी की खुदाई एवं जीर्णोद्धार में एक शिलालेख मिला है जिसमें राजा चाँद का उल्लेख मिलता है।

बावड़ी के चारों ओर बने बरामदों में कई सारी प्राचीन कलात्मक प्रतिमाएं रखी हुई हैं। ये प्रतिमाएं हर्षद माता मंदिर के अवशेष हैं। तो अब हम चलते हैं हर्षद माता के दर्शन करने।

Harshad Mata Temple

चाँद बावड़ी के पास स्थित है राजा चाँद के द्वारा ही निर्मित हर्षद माता का मंदिर
मंदिर की कुछ सीढ़ियां चढ़ने के बाद सबसे पहले दाहिनी ओर एक प्राचीन शिवलिंग स्थापित है जहाँ स्थानीय लोग भगवान शिव की उपासना करते हैं। हर्षद माता को हरसिद्ध माता के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि जो भी भक्त माँ की सच्चे मन से प्रार्थना करता है माँ हरसिद्ध उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

मंदिर के ठीक सामने बावडी होने का मतलब साफ़ है कि जो भी व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करे, वह पहले अपने हाथ-मुँह धोए, उसके बाद मंदिर में प्रवेश करे। और यही हमारे देश की संस्कृति भी है कि जो भी व्यक्ति किसी धार्मिक स्थल में प्रवेश करता है, उसका तन-मन शुद्ध होना चाहिए।

 कहते हैं कि  1021-26 के दौरान मोहम्मद गजनवी ने मंदिर एवं इसके परिसर में तोड-फ़ोड की तथा मूर्तियों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया था। वे खण्डित मूर्तियाँ आज भी मंदिर एवं बावडी परिसर में सुरक्षित रखी हुई हैं। बाद में 18वीं सदी में जयपुर महाराजा ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। लेकिन यहाँ बिखरी पड़ी इन सुन्दर और कलात्मक मूर्तियों को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हर्षद माता का मूल मंदिर कितना वैभवशाली रहा होगा।

मंदिर पहले छह फ़ुट की नीलम पत्थर से बनी हुई हर्षद माता की मूर्ति हुआ करती थी जो कि सन् 1968 में चोरी हो गई थी। तब यहाँ के निवासियों ने हर्षद माता की पत्थर व सीमेंट से बनी वर्तमान मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई थी।

Harshat Mata Abhaneri

 चाँद बावडी एवं हर्षद माता मंदिर दोनों की ही खास बात यह है कि इनके निर्माण में प्रयुक्त पत्थरों पर शानदार नक्काशी की गई है, साथ ही इनकी दीवारों पर हिंदू धर्म के सभी 33 कोटी देवी-देवताओं के चित्र भी उकेरे गये हैं।  चाँद बावडी एवं हर्षद माता मंदिर दोनों ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन हैं जिन्हें विभाग द्वारा चारों ओर से लोहे की मेड बनाकर संरक्षित किया गया है।

अंत में आप सभी से निवेदन करूँगा कि यदि आपके आसपास के क्षेत्र में भी कोई ऐसी ऐतिहासिक विरासत है तो कृपया उसे सहेज कर रखें उन्हें किसी भी तरह नष्ट करने का प्रयास ना करें। ये हमारी विरासत है जो हमारे हिन्दुस्थान के प्राचीन वैभव को दर्शाती हैं। और उस युग की गौरवशाली झलकियां दिखाती हैं।
दोस्तों आपको आभानेरी का ये स्थान कैसा लगा कृपया कमेंटबॉक्स में जरूर बताएं और हिन्दुस्थान की इस यात्रा में हमसे जुड़े रहें।

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