रहस्यमयी पारिजात का पेड़ और कुंतेश्वर महादेव मंदिर |Parijat Tree |Kunteshwar Temple Kintoor

Kundeshwar Mahadev Kintoor: उत्तरप्रदेश के बाराबांकी जिले में एक पौराणिक गाँव है, किन्तूर। यहाँ  विराजमान है कुंतेश्वर महादेव।

कौन कर जाता है यहाँ रात को ही पूजा ?

किंतुर गांव का ये कुंतेश्वर महादेव मंदिर अपनी अलग पहचान के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि यहां के शिवलिंग की कोई अदृश्य शक्ति रात 12 बजे के आसपास सबसे पहले पूजा अर्चना कर जाती हैं। इस कारण आज तक किसी की भी यहां के शिवलिंग का सबसे पहले पूजा अर्चना करने की ख्वाहिश पूरी नहीं हुई। यह रहस्य इस मंदिर को ख़ास बना देता है। पर प्रश्न है कि कौन है वो अनजान शक्ति जो रात के अंधकार में शिवलिंग की पूजा कर जाती है?

कुन्ती का किन्तूर 

माना जाता है कि किन्तूर गांव का नाम पाण्डवों की माता कुन्ती के नाम पर है। जब धृतराष्ट्र ने पाण्डु पुत्रों को अज्ञातवास दिया तो पांडवों ने अपनी माता कुन्ती के साथ यहां के वन में निवास किया था। इसी दौरान पांडवों ने माता कुंती के लिए यहाँ कुंतेश्वर महादेव की स्थापना की थी। माता कुंती प्रतिदिन सुबह शाम यहाँ पारिजात के दिव्य पुष्पों से अपने आराध्य भगवान् शिव की आराधना करती थीं। कहते हैं कि माता कुंती यहाँ महादेव की आराधना में ऐसी रमी कि महाभारत के युद्ध के बाद अपनी आयु पूरी  कर जब उन्होंने देह का त्याग किया तो उनकी आत्मा के जिस अंश में कुंतेश्वर महादेव बसे थे वह अंश स्वतः ही इस मंदिर में आगया। 

मान्यता है कि इस मंदिर में आज भी माता कुंती सूक्ष्म रूप  में रहती हैं और रोज रात को अपने आराध्य भगवान् शिव की पूजा करती हैं।

कैसे हुई यहाँ कुंतेश्वर महादेव की स्थापना ?

महाभारत काल में माता कुंती अपने पांडव पुत्रों के साथ अज्ञातवास के समय यहां आईं तो उन्होंने महाबली भीम से यहां पर शिवलिंग की स्थापना को कहा था। तब भीम पर्वतमालाओं से दो शिवलिंग लाए और यहां स्थापित कर दिया।  तब कुंती की इच्छा हुई कि वे पारिजात के पुष्पों से शिवलिंग की पूजा करें। और पांडवों से कहा कि उनके लिए पारिजात का वृक्ष लेकर आये ताकि वे प्रतिदिन पारिजात के पुष्पों से भगवान् शिव की पूजा कर सकें। लेकिन पारिजात का वृक्ष तो स्वर्गलोक में  देवराज इन्द्र की वाटिका में शोभायमान था ? आगे की कथा जानने के लिए हम जानते हैं यहाँ के पारिजात वृक्ष को। 

पारिजात की अनुपम छवि | Parijat Tree Barabanki

पारिजात का ये वृक्ष किन्तूर से लगभग 2.5 किलोमीटर दूर बरौलिया गाँव में स्थित है। ग्रामीण क्षेत्र के मनोरम प्राकृतिक वातावरण के रास्ते से गुजरते हुए हम करीब 5 मिनट में पारिजात वृक्ष के धाम पहुँच गए। 

इस वृक्ष के दर्शन करते ही ज्ञात हो जाता है कि इसकी छवि सचमुच अलौकिक है। इसके चमकदार तने और शाखाओं से दिव्य आभा निकलने का एहसास होता है। 

पौराणिक मान्यता

पारिजात के वृक्ष के स्वर्ग से धरती पर आने के विषय में पौराणिक मान्यता ये है कि एक बार श्रीकृष्ण अपनी पटरानी रुक्मिणी के साथ किसी समारोह में रैवतक पर्वत पर गए। उसी समय नारद अपने हाथ में पारिजात का पुष्प लिए हुए आए। नारद ने इस पुष्प को श्रीकृष्ण को भेंट कर दिया। श्रीकृष्ण ने इस पुष्प को रुक्मिणी को दे दिया और रुक्मिणी ने इसे अपने बालों के जूड़े में लगा लिया।  पास में खडी हुयी सत्यभामा की दासियों ने इसकी सूचना सत्यभामा को दे दी। श्री कृष्ण जब द्वारिका में सत्यभामा के महल में पहुंचे तो सत्यभामा ने पारिजात वृक्ष लाने के लिए हठ किया। सत्यभामा को प्रसन्न करने के लिए स्वर्ग में स्थित पारिजात को लाने के लिए देवराज इंद्र पर आक्रमण कर पारिजात वृक्ष को पृथ्वी पर द्वारिका ले आये और वहां से अर्जुन ने इस पारिजात को किन्तूर में स्थापित कर दिया।

तो ऐसा क्या है पारिजात के वृक्ष और इसके फूलों में जो इसे बनाता है इतना ख़ास । 

  • मान्यता के अनुसार ये दिव्य वृक्ष स्वर्गलोक से यहाँ लाया गया है। 
  • धरती पर इस वृक्ष की आयु लगभग 5 से 7 हजार साल पुरानी है। 
  • इसकी हाइट से भी ज्यादा इसके तने का परिमाप है। इस वृक्ष की हाइट करीब 45 फीट तथा इसके तने का परिमाप लगभग 50 फ़ीट है। 
  • इस वृक्ष पर फूल जून माह के आसपास लगते हैं। 
  • इसके फूल सफेद रंग के और छोटे होते हैं। फूलों का निचला भाग चटख नारंगी रंग का होता है। सूखने पर ये फूल सुनहरे हो जाते हैं। 
  • ये फूल केवल रात में खिलते हैं और सुबह होते ही अपने आप पेड़ से झड़ जाते हैं। इनकी खुशबू बहुत ही मोहक होती है। रात  के समय खिलने से इनकी मोहक खुशबु दूर दूर तक फ़ैल जाती है। 
  • फूल लगने वाले दिनों में इस पर इतने फूल लगते हैं कि जितने फूल सुबह नीचे गिरते हैं उससे भी अधिक फूल उस रात को नए खिल जाते हैं। 
  • पूजा के लिए भी इसके पुष्पों को कभी तोडा नहीं जाता बल्कि टूटकर नीचे गिरे फूलों को ही उठाया जाता है। 
  • पारिजात के फूलों से हर यानी भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है इसलिए इसे हरश्रृंगार या हरसिंगार भी कहा जाता है।
  • पारिजात, कल्पवृक्ष व हरसिंगार के अलावा इसके अन्य नाम हैं – शेफाली, प्राजक्ता और शिउली। यह पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है। 
  • हरसिंगार के इन फूलों का केवल दैवीय महत्त्व ही नहीं बल्कि औषधीय महत्त्व भी बहुत अधिक है। इसके फूलों से लेकर पत्त‍ियां, छाल एवं बीज भी बेहद उपयोगी हैं।
  • यदि कोई व्यक्ति बहुत तनाव में रहता है तो इसके फूल की सुगंध एक माह तक लेते रहने से तनाव दूर हो जाता है।
  • पाचन शक्ति बढ़ाने में भी इसके पत्ते और फूल का इस्तेमाल किया जाता है
  • गठिया रोग में इसके फूल का इस्तेमाल होता है। इसके फूलों का सेवन ह्रदय रोग से भी बचाता है। साथ ही हड्डियों में आने वाली परेशानी भी दूर होती है।
  • हरसिंगार के पत्ते और छाल का ज्‍यादा इस्‍तेमाल किया जाता है।
  • साइटिका रोग के इलाज में हरसिंगार को सबसे अधिक उपयोगी माना जाता है।
  • इससे अस्थमा आदि रोगों का भी उपचार किया जाता है।

तो इस प्रकार से पारिजात वृक्ष का ना केवल पौराणिक महत्त्व है बल्कि इसकी इन सभी विषेशताओं से भी ये पेड़ अपने दिव्य वृक्ष होने को सिद्ध करता है। आपको आज का ये वीडियो कैसा लगा साथ ही  इस पारिजात वृक्ष और कुंतेश्वर महादेव के बारे में आपके क्या विचार हैं कृपया कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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