महाभारत युद्ध में पांडवों को जिताने के लिए श्रीकृष्ण ने किये थे ये छल

महाभारत का युद्ध अधर्म के विरुद्ध किया गया धर्म युद्ध था।  इस धर्मयुद्ध में कौरवों ने नाना प्रकार के छल, कपट, धोखे, और अधर्म का सहारा लेकर पांडवों को आघात पहुंचाया। इस पर परम कूटनीतिज्ञ श्रीकृष्ण ने पांडवों की विजयश्री के लिए कूटनीति का मार्ग अपनाया और उन्हें विजय दिलाई।  कृष्ण को उस समय का सबसे चतुर व्यक्ति समझा जाता है। वैसे तो श्रीकृष्ण द्वारा किये गए छल नियमों के विरुद्ध थे (जानिए क्या थे महाभारत युद्ध के नियम ) लेकिन जब कौरवों ने ही सभी नियमों को ताक में रख अधर्म व छल कपट का सहारा लिया तब ऐसी स्थिति में श्रीकृष्ण को भी छल का मार्ग अपनाना पड़ा और श्रीकृष्ण के द्वारा उठाये गए ये कदम धर्म की स्थापना के लिए थे अतः उन्हें गलत नहीं बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की लीला ही कहना उचित होगा। यहाँ  हम आपको बता रहे हैं कृष्ण की चतुराई के ऐसे कुछ प्रसंग जिनसे पांडवों की विजय का मार्ग प्रशस्त हुआ –

श्रीकृष्ण की चतुराई से ही इस प्रकार अर्जुन हरा पाए भीष्म को –

Arjun, Shikhandi and Bhishma

महायुद्ध के प्रारम्भ में ही कौरवों के सेनापति भीष्म ने पांडव सेना में ऐसी भयंकर तबाही मचाई  कि पांडव सेना के पैर उखड़ने लगे।  ऐसे में भीष्म को हराया जाना पांडवों के लिए बहुत आवश्यक हो गया।  परंतु भीष्म को हराया जाना बहुत मुश्किल था।  भीष्म ऐसे परम योद्धा थे जिनके गुरु स्वयं भगवान परशुराम थे। साथ ही उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। भीष्म को सीधे मुकाबले में किसी के द्वारा भी हराया जाना नामुमकिन था।  ऐसे में श्रीकृष्ण ने एक छल किया। श्रीकृष्ण के कहने पर पांडवों ने भीष्म से उनकी मृत्यु का उपाय पूछा।  कुछ सोचकर भीष्म ने अपनी मृत्यु का उपाय पांडवों को बता दिया कि वे स्त्री के सामने हथियार नहीं उठाते। परंतु उस युद्ध में कोई स्त्री नहीं आ सकती थी।  ऐसे में श्रीकृष्ण ने शिखण्डी का सहारा लिया।  शिखण्डी अपने पूर्वजन्म में अम्बा थी जो भीष्म से बदला लेना चाहती थी। यह बात भीष्म जानते थे।  इसलिए वे अब भी शिखण्डी को एक स्त्री ही मानते थे। श्रीकृष्ण शिखण्डी को युद्धभूमि में लाये और उसे अर्जुन की ढाल बनाया।  शिखण्डी के सामने आने पर भीष्म ने अपने अस्त्र-शस्त्र डाल दिए।  इसके बाद कृष्ण के इशारे पर  अर्जुन ने भीष्म पर बाणों की वर्षा कर दी और उन्हें बाणों की शय्या पर पहुंचा दिया।  भीष्म ने कहा की. वे सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर छोड़ेंगे।

जयद्रथ को चतुराई से लाये अर्जुन के सामने –

Arjun Killing Jaidrath

जयद्रथ के कारण अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह में फंस गया था।  उस चक्रव्यूह में दुर्योधन, कर्ण आदि ने मिलकर अधर्म से अभिमन्यु की हत्या कर दी।  जब यह बात अर्जुन को पता चली तो उसने प्रण किया कि अगले दिन सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध करूंगा, यदि ऐसा नहीं हुआ तो स्वयं अग्नि समाधि ले लूंगा। इस प्रतिज्ञा के बाद अगले दिन समस्त कौरव सेना जयद्रथ की रक्षा के लिए तैनात हो गई क्योंकि यदि जयद्रथ की सूर्यास्त तक रक्षा हो जाएगी तो अर्जुन समाधि लेकर स्वयं ही खुद का प्राणान्त कर लेगा।  और अर्जुन के मरते ही  पांडवों को हराना सरल हो जायेगा। जब पूरा दिन बीतने लगा और अर्जुन जयद्रथ को नहीं पा सका तो श्रीकृष्ण ने एक मायाजाल रचा।  उन्होंने सूर्य को छिपा दिया।  ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे सूर्यास्त हो गया। सूर्यास्त जानकर जयद्रथ रक्षा के घेरे से बाहर निकल आया और अर्जुन की नाकामी पर हंसने लगा।  इतने में ही सूर्य फिर से निकल आया और अर्जुन ने उसका वध कर यमलोक पहुंचा दिया।

श्रीकृष्ण ने इस प्रकार करवाया  द्रोणाचार्य का वध –

Bhima killing elephant ‘Ashwathama’ and Dhrishtadyumna Killing Drona

भीष्म के बाद पांडवों के लिए बड़ी समस्या बनकर उभरे गुरु द्रोणाचार्य। द्रोण और उनका पुत्र अश्वत्थामा दोनों ही प्रबल योद्धा थे। उन्होंने पांडवसेना में तबाही मचा रखी थी।  तब श्रीकृष्ण ने उनके संहार के लिए एक युक्ति चली। उनके इशारे पर भीम ने अवंतिराज के अश्वत्थामा नामक हाथी को मार दिया।  इसके बाद युद्ध में यह  खबर फैला दी कि अश्वत्थामा मारा गया।  यह बात जब द्रोण तक पहुंची तो वे विचलित हो उठे और इस बात की सत्यता जानने युधिष्ठर के पास गए।  युधिष्ठिर ने अपने सत्यवादी आचरण के अनुरूप कह दिया कि हाँ अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।  इसी समय कृष्ण ने बीच में ही जोर से शंखनाद कर दिया। शंख की आवाज में द्रोण आखिरी शब्द हाथी नहीं सुन पाए। द्रोण को भ्रम हुआ कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया।  और शोकग्रस्त होकर उन्होंने हथियार डाल दिए। इस समय का फायदा उठाकर द्रुपद के पुत्र और द्रौपदी व शिखण्डी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से द्रोण का सिर काटकर धड़ से अलग कर दिया।

श्रीकृष्ण ने इस प्रकार की अर्जुन की दिव्यास्त्र से रक्षा –

Indra and Karna

महाभारत युद्ध से पहले देवराज इंद्र को यह भय था कि उनका पुत्र अर्जुन कर्ण को नहीं हरा सकेगा।  अतः एक ब्राह्मण का वेश धारण कर इंद्र ने दानवीर कर्ण से उसके कवच और कुंडल दान में मांग लिए।  कर्ण ने इंद्र को पहचान जाने के बाद भी अपने कवच कुंडल दे दिए।  इस अपूर्व दानवीर राजा से इंद्र प्रसन्न हुए और कर्ण को अमोघ शस्त्र दिया।  इस शस्त्र को केवल एक बार चलाया जा सकता था अतः इस अचूक हथियार को कर्ण ने अर्जुन को मारने के लिए संभाल कर रखा था। श्रीकृष्ण यह बात जानते थे अतः अर्जुन को बचाने के लिए उन्होंने भीम के पुत्र घटोत्कच को युद्धक्षेत्र में भेजा। वीर पराक्रमी घटोत्कच ने कौरव सेना में भयंकर हाहाकार मचा दिया।  घटोत्कच की तबाही से कौरव सेना त्राहि-त्राहि करने लगी। इस तबाही से विचलित होकर दुर्योधन ने कर्ण को घटोत्कच पर अमोघ शस्त्र उपयोग करने के लिए विवश कर दिया। कर्ण के अमोघ शस्त्र से घटोत्कच वीरगति को प्राप्त हुआ और अर्जुन की रक्षा हो गई।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन के हाथों छल से मरवाया कर्ण को –

Arjun and Karna

अर्जुन की ही भांति कर्ण भी एक महाधनुर्धर था।  द्रोण के बाद कर्ण कौरव सेना का सेनापति बना।  कर्ण और अर्जुन के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसका कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा था।  संभव था कि कर्ण अर्जुन को हरा देता। युद्ध के बीच कर्ण के रथ का पहिया धंस गया। वह रथ से उतरकर पहिया निकालने लगा। इसी समय कृष्ण ने अर्जुन को स्मरण दिलाया कि इसी कर्ण ने भी तुम्हारे पुत्र अभिमन्यु को छल से घेरकर मार डाला था। एक निहत्थे बालक को इस तरह छल से मारने वाले को मारना कोई अधर्म नहीं है। कृष्ण की बात सुनकर अर्जुन ने पहिया निकालते हुए निहत्थे कर्ण को अपने बाण  से भेद दिया।

श्रीकृष्ण की चतुराई से दुर्योधन की जांघ नहीं हो पाई लोहे सी मजबूत –

Gandhari and Duryodhana

दुर्योधन की माता गांधारी ने अपने विवाह के समय से ही अपनी आँखों पर पट्टी बांध रखी थी।  पतिव्रता धर्म से उनकी बंद आँखों में इतना तेज बन चुका थी कि वे अपने पुत्र दुर्योधन को लौहखंड सा मजबूत बना सकती थी। उसने दुर्योधन को पूर्णतः नग्न होकर स्वयं के सामने आने को कहा।  गांधारी की दृष्टि दुर्योधन पर पड़ते ही उसका पूरा शरीर लोहे जैसा बन जाता। दुर्योधन पूर्णतः नग्न होकर गांधारी के पास जाने लगा।  उसे श्रीकृष्ण ने देख लिया वे दुर्योधन के पास जाकर बोले कि क्या तुम अपनी माता के सम्मुख इस तरह जाओगे। तुम्हें मर्यादा नहीं छोड़नी चाहिये।  दुर्योधन इस बात से दुविधा में पड़ गया और उसने अपनी जांघों पर केले का पत्ता लपेट लिया। गांधारी ने अपने आँखों की पट्टी हटाकर जब दुर्योधन को देखा तो उसका सारा शरीर तो लोहे सा बन गया लेकिन उसकी जांघें कमजोर ही रह गईं।

इस प्रकार श्रीकृष्ण ने भीम के हाथों मरवाया दुर्योधन को –

Duryodhan and Bhima

जब भीम और दुर्योधन का निर्णायक गदा युद्ध चल रहा था तब भीम के भीषण प्रहारों का भी दुर्योधन के लोहे जैसे शरीर पर कोई असर नहीं हो रहा था।  तब श्रीकृष्ण ने भीम को दुर्योधन की जांघों पर प्रहार करने के लिए उकसाया क्योंकि उसके शरीर का केवल वही भाग पहले की तरह सामान्य और कमजोर था। भीम ने श्रीकृष्ण का इशारा समझ दुर्योधन की जांघें गदा के प्रहारों से तोड़ दी। गदा युद्ध में कमर से नीचे वार करना नियम के विरुद्ध है लेकिन कृष्ण के उकसाने पर भीम ने ऐसा किया।

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