Bhadwa Jaipur

 Bhadwa Jaipur:
               जयपुर से 72 किलोमीटर दूर स्थित भादवा दादू तथा निरंजनी सम्प्रदाय की पीठों के लिए प्रसिद्द है। भादवा का दादु पीठ ‘स्यामीजी का जागा’ (स्वामीजी की जगह) के नाम से विख्यात है। यह पीठ दादु के शिष्य रज्जब की शिष्य परंपरा में है। कहा जाता है कि सांगानेर से महंत महाराज बागड़ में गोगामेड़ी पधार गए थे। गोगामेड़ी से लालदासजी लोराणा गांव (नागौर) में आकर भजन करने लगे। उनके शिष्य रामचरण, उनके शिष्य ईश्वरदास, उनके शिष्य शम्भुदास हुए। शम्भुदास भादवा में पधारे। भादवा गद्दी की प्रमुख परंपरा में 1. शम्भुदास 2. लछमनदास 3. गोपालदास 4. भूरादास 5. जुगलदास 6. हरिदास 7. नारायणदास 8. स्वामी नित्यानंद हुए। दादु महाविद्यालय जयपुर के रजत जयंती ग्रन्थ में लिखा है कि रज्जबज्जी का थाम्भा सांगानेर से टूंटोली गया और अब भादवा में है। दादूपन्थ परिचय में रज्जबज्जी के जिन 24 प्रमुख थामभोम का उल्लेख है, उनमें भादवा भी है। किसी समय इस पीठ में सघन वृक्षावली लगी हुई थी तथा बड़ी संख्या में साधु संत यहाँ आया करते थे। इन पीठ के पास सैंकड़ों बीघा जमीन थी। नीम और इमली के वे विशाल वृक्ष अब नष्ट हो गए हैं। प्राचीन स्मारकों में, इस पीठ के संस्थापक स्वामी शम्भुदासजी और उनके शिष्य लछमनदासजी के तिबारी अभी मौजूद हैं। इन तिबारों में संगमरमर की चौकियों पर उनके चरण चिन्ह स्थापित हैं।
दादुपीठ के प्रवेशद्वार के सामने दादु मंदिर है। यहाँ संगृहीत कुछ हस्तलिखित पोथियां भी हैं, जिनमे दादूवाणी, सुन्दरदास की रचनाएं, जोगशास्त्र आदि उल्लेखनीय हैं।
भादवा में स्थित दूसरा पीठ निरंजनी संप्रदाय का है, जो दादुपीठ  से भी पहले का है। इसके संस्थापक जगजीवनदास निरंजनी थे। जो दादूजी के समकालीन थे तथा उनके प्रति गुरुभाव रखते थे परन्तु बाद में उन्होनें अपना अलग पंथ चला लिया। तत्कालीन संत समाज में इनकी बहुत ख्याति थी। निरंजनी सम्प्रदाय की 12 गद्दियां थी जिनमें से एक भादवा में थी। गांव के पश्चिमी छोर पर निरंजनी महंतों का समाधिस्थल है, जहां एक अत्यंत जीर्ण मंदिर, दो तिबारे तथा कुछ चबूतरे बने हुए हैं, जिन पर संगमरमर की चौकियों पर दिवंगत महंतों के चरण चिन्ह स्थापित हैं। यह स्थान वर्तमान में ‘बाग़ वाली कोठी’ के नाम से जाना जाता है।यहाँ से ई. 1059 का एक लेख प्राप्त हुआ है।

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