विराट नगर में पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास का अंतिम वर्ष व्यतीत किया था। इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) यहाँ से मात्र 169 किलोमीटर दूर है। यहाँ एक भीम डूंगरी है जिस पर भीम रहता था। यहीं पर कीचक का वध किया गया था। बाणगंगा को अर्जुन ने अपने बाण से प्रस्फुटित किया था। यहाँ पर कौरवों के पदचिन्ह भी अंकित बताये जाते हैं। कौरव यहाँ पर राजा विराट की गायें चुरा ले जाने के लिए आये थे।
इस क्षेत्र से पुरातात्विक सामग्री का विशाल भंडार प्राप्त हुआ है, जिनमें पाषाण कालीन उपकरण एवं औजार, आदिम कालीन शैल चित्र, शंख लिपि के चित्र, ईसा से तीसरी शताब्दी पूर्व से लेकर पहली शताब्दी तक के बौद्ध सभ्यता के अवशेष, गोल मंदिर तथा मठ, अशोक का स्तम्भ आदि मिले हैं।
विराट नगर के मध्य में अकबर ने एक टकसाल खोली थी। इस टकसाल में अकबर, जहांगीर तथा शाहजहां के काल में ताम्बे के सिक्के ढाले जाते थे। यहाँ एक मुग़ल गार्डन, ईदगाह तथा कुछ अन्य मुग़ल इमारतें बनाई गयी थीं जिनमे मुग़ल गार्डन का विशाल दरवाजा आज भी दर्शनीय है। विराट नगर के चारों ओर फैली हुई पहाड़ियों में अनेक गुफाएं स्थित हैं जिनमे बिजार अथवा बीजक की पहाड़ी भीम की डूंगरी तथा गणेश गिरी की गुफायें स्थित है।