Pregnant Father’s Son: Mandhata पिता के गर्भ से जन्म लिया था इस चक्रवर्ती सम्राट ने

आज के विज्ञान प्रधान समय में कई केस ऐसे सामने आते हैं जिनमें एक पुरुष गर्भधारण कर अपने बच्चे को जन्म देता है। इस युग में भी ऐसी घटनायें हमें आश्चर्यचकित कर देती हैं।  लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज से हजारों साल पहले भगवान राम से भी पहले उन्ही के एक पूर्वज राजा ने अपने गर्भ से एक पुत्र को जन्म दिया और वही पुत्र आगे जाकर एक चक्रवर्ती सम्राट बना जो राजा मान्धाता के नाम से प्रसिद्ध है।  जी हाँ ! इस बात से आप अनुमान लगा सकते हैं कि प्राचीन भारत का ज्ञान आज की तुलना में कितना अधिक उच्चकोटि का था।  जिन बातों को आज भी हम चमत्कारों का दर्जा देते हैं ऐसा चमत्कार तो हमारे भारत में हजारों वर्ष पहले ही हो चुका है।

Raja Mandhata

 इक्ष्वाकु वंश में भगवान राम से पहले एक राजा हुए जिनका नाम  युवनाश्व था।  दुर्भाग्यवश इनके कोई पुत्र नहीं हुआ।  इस कारण अपने वंश की वृद्धि के लिए अपना सारा राजपाट छोड़कर इन्होंने वन में जाकर तप करने का निश्चय किया।  वन में उनकी भेंट ऋषि च्यवन से हुई।  ऋषि च्यवन ने राजा का दुःख जानकर उनके लिए पुत्रेष्टि यज्ञ आरम्भ किया।  यज्ञ में एक मटका जल अभिमंत्रित किया गया था जिसे राजा युवनाश्व की रानी को पीना था।

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इस यज्ञ में बहुत सारे ऋषि-मुनियों ने भाग लिया। यज्ञ समाप्त होते होते अत्यधिक थकान के कारण सभी लोग गहरी नींद में सोगए।  आधी रात को राजा को प्यास लगी।  उन्होंने अपने सेवकों को पुकारा।  परंतु सेवक थकने के कारण गहरी नींद में थे, ऐसे में राजा ने स्वयं उठकर जल की तलाश की।  उन्हें वह अभिमंत्रित जल का मटका दिखाई दिया।  जिसके बारे में उन्हें ज्ञात नहीं था। उन्होंने वही जल पीकर अपनी प्यास बुझाई। सुबह उठने पर जब इस बात का ऋषि च्यवन को पता चला तो उन्होंने राजा से कहा कि आपकी संतान अब आपके ही गर्भ से जन्म लेगी।

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जब संतान के जन्म लेने का समय आया तब अश्विनी कुमारों ने राजा युवनाश्व के गर्भ को चीरकर बच्चे को बाहर निकाला।  (ज्ञात हो कि इन्हीं अश्विनी कुमारों ने च्यवनप्राश का अविष्कार कर ऋषि च्यवन को दिया था। ) सभी ने उस बच्चे को आशीर्वाद दिया।

परंतु अब समस्या उत्पन्न हुई कि अभी बच्चा अपनी भूख किस प्रकार मिटाएगा।  सभी देवता इस अलौकिक जन्मोत्सव पर वहाँ उपस्थित थे।  देवराज इंद्र आगे आये, उन्होंने अपनी अंगुली बच्चे के मुँह में रखी। अंगुली में से दुग्ध-धारा निकलने लगी।  देवराज ने कहा कि मैं ही इसकी  माँ (धाता) हूँ अतः आज से यह पुत्र मान्धाता के नाम से जाना जायेगा।

कालान्तर में राजा मान्धाता चक्रवर्ती सम्राट हुआ।  उन्होंने 100 राजसूय और 100 अश्वमेध यज्ञ किये।  वर्षों तक धर्मानुकूल शासन करने के बाद उन्होंने वन जाकर भगवान विष्णु की तपस्या की तथा वन में ही स्वर्ग सिधारे।

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