कैला देवी : यादवों की आराध्या और श्रीकृष्ण की बहन योगमाया का अवतार | Kaila Devi Temple Karauli

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दोस्तों मथुरा के यदुवंशी राजा भगवान् श्रीकृष्ण की जन्मकथा में योगमाया के बारे में तो आपने जरूर सुना या पढ़ा होगा। जब कंस ने कन्या रूपी योगमाया को वसुदेव और देवकी की आठवीं संतान समझकर मारना चाहा। तो वह योगमाया कंस के हाथों से छूटकर उसे चेतावनी देती हुई अंतर्ध्यान हो गई थी। चूँकि वह कन्या यशोदा की पुत्री होने के नाते श्रीकृष्ण की बहन थी इसलिए यदुवंश में योगमाया आराध्या देवी के रूप में पूजी जाती हैं।

करौली में यदुवंश का राज रहा है। इस राजवंश को श्रीकृष्ण का वंशज माना जाता है।  1600 ई. में यहाँ के राजा भोमपाल ने यहाँ कैलादेवी के मंदिर का निर्माण कराया। माना जाता है कि वही योगमाया कैलादेवी के रूप में इस मंदिर में विराजमान है।

सबसे पहले मैं आपको करौली शहर के कुछ विशिष्ट स्थानों के बारे में बताता हूँ –

  • करौली राजस्थान का ऐतिहासिक नगर तथा करौली जिले का मुख्यालय है। इसकी स्थापना राजा विजयपाल ने 955 ई. के आसपास की थी।  यहाँ स्थित कल्याणजी के प्राचीन मंदिर के नाम से इस नगर को पहले कल्याणपुरी कहा जाता था। उसके बाद कालान्तर में इसी मंदिर से करौली की नींव डाली गई।
  • इसी मंदिर के पास स्थित यहाँ का सिटी पैलेस उत्कृष्ट कलाकारी के लिहाज से दर्शनीय है। जिसे राजाजी का महल कहा जाता है।
  • सिटी पैलेस के पास ही देशभर में प्रसिद्ध मदनमोहनजी का मन्दिर स्थित है जहाँ प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु मदनमोहनजी के दर्शन करने आते हैं।  कहते हैं कि करौली के मदनमोहनजी तथा जयपुर के गोविंददेवजी और गोपीनाथजी इन तीनों मंदिरों के एक ही दिन में दर्शन करना अत्यंत ही शुभ तथा मंगलकारी होता है।

माता कैला देवी का मंदिर

कालीसिल नदी किनारे पर स्थित पूर्वी राजस्थान का प्रसिद्ध शक्तिपीठ माता कैला देवी का मंदिर करौली शहर से 24 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। करौली के लाल पत्थरों की लालिमा के बीच कैलादेवी का स्वर्ण कलश युक्त सफेद संगमरमर से बना यह भव्य मन्दिर अपनी लहराती लाल पताकाओं से बहुत ही आकर्षक दिखाई देता है  तथा आने वाले दर्शनार्थियों को सम्मोहित करता है । 

क्यों है कैला देवी का मुख तिरछा ?

कैलादेवी करौली के यदुवंशी राज परिवार की कुलदेवी है, जो लोक में करौलीमाता के नाम से भी प्रसिद्ध है । इस मन्दिर में कैलादेवी की प्रतिमा के साथ चमुण्डामाता का विग्रह भी स्थित है । चांदी की कलात्मक चौकी पर बाईं ओर विराजमान कैलादेवी के विग्रह का मुख थोड़ा तिरछा है तथा दाहिनी ओर की दूसरी प्रतिमा माता चामुंडा देवी की है। कैला देवी की आठ भुजाएं हैं। देवी का मुख तिरछा होने के बारे में अनेक कहानियाँ प्रचलित है । सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार देवी के एक भक्त को किसी कारणवश मन्दिर में प्रवेश नहीं करने दिया तथा वह देवी के दर्शन किये बिना ही वापस लौटा दिया गया तब से अप्रसन्न होकर देवी उसी दिशा में निहार रही है। जिस दिशा में वह भक्त गया।   

डकैत भी आते हैं माता के मंदिर में 

माता कैलादेवी का यह मंदिर डकैतों की भी साधनास्थली रहा है। यहाँ से लगभग 30 किलोमीटर दूर बहने वाली चम्बल नदी के बीहड़ों से डकैत वेश बदलकर माँ कैला देवी के इस मन्दिर में आते हैं और मां की आराधना करते हैं। वे अपने लक्ष्य की साधना के लिए मां से मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरा होने पर फिर आते हैं। मां की कई घंटों साधना कर विजय घंटा चढ़ाते हैं और निकल जाते हैं। मन्दिर के बाहर और अंदर पुलिस का कड़ा पहरा रहता है। पुलिस को भनक भी लग जाती है कि डकैत आने वाले हैं, लेकिन बावजूद इसके डकैत आते हैं और पूजा कर निकल जाते हैं। भरपूर कोशिश के बावजूद डकैतों को रोक पाना पुलिस के वश में नहीं। हालांकि, साधना के समय आने वाले डकैतों ने श्रद्धालुओं को कभी हानि नहीं पहुंचाई।

लांगुरिया के दर्शन

 कैला देवी के दर्शन लांगुरिया के दर्शन के बिना अधूरा माना जाता है। मंदिर के प्रांगण में लांगुरिया अर्थात हनुमानजी का मंदिर स्थित है। मंदिर में आने वाला प्रत्येक भक्त लांगुरिया जी के चरणों में शीश अवश्य झुकाता है। कहते हैं कि यदि आपने लांगुरिया को प्रसन्न कर लिया तो माँ कैला देवी आप पर स्वतः प्रसन्न हो जाएँगी। कैलादेवी को प्रसन्न कर मनोवांछित फल पाने का सबसे सीधा सरल उपाय उनके गण लांगुरिया को राजी करना माना जाता है । लांगुरिया के मंदिर के बाईं ओर गणेशजी तथा दाहिनी ओर शिवजी का मंदिर स्थित है। 

बहोरा भक्त का मंदिर

मंदिर के प्रांगण में ही बहोरा भक्त का मंदिर है। मान्यता है कि यहाँ विविध व्याधियों से मुक्ति मिलती है।  इसी के पास कालीसिल नदी घाट का द्वार है। मन्दिर के पार्श्व में कालीसिल नदी धनुषाकृति में बहती हैं । नदी के पवित्र जल में स्नान करने के उपरान्त श्रद्धालु देवी के दर्शनार्थ वहाँ आते हैं।

नवरात्र

यों तो प्रतिदिन ही यहाँ श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है पर नवरात्रों के समय लगने वाले मेलों में यहाँ विशेष भीड़ उमड़ती है। भक्त दूर दूर से ध्वजाएं लाकर मैया को अर्पित करते हैं। सभी भक्त कैला मैया के दरबार में  प्रसन्नता और भक्तिपूर्वक नाचते गाते हैं और हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाते हैं।

कैला देवी का प्राचीन मंदिर /  पहला मंदिर

कैला देवी के मंदिर से लगभग चार किलोमीटर दक्षिण में बाबा केदारगिरी की गुफा अवस्थित है। यहाँ कैला देवी का प्राचीन मंदिर विद्यमान है।  कैला देवी की प्रतिमा पहले केदारगिरी गुफा के इसी स्थान पर स्थापित की गई थी। बाद में राजा भोमपाल ने लगभग 1600 ईसवी में वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाकर माता की प्रतिमा को यहाँ स्थापित करवाया। जो भी भक्त माँ कैला देवी के दर्शन करने आते हैं वे माताजी  के इस प्राचीन स्थान पर भी शीश झुकाने आते हैं। 

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