जब एक मछली की सत्यनिष्ठा के आगे झुके देवराज इन्द्र

” Bodhisattva as Fish”

भारतीय संस्कृति में परोपकार सदा ही मुख्य विषय रहा है। इसी परोपकार को जीवंत करते “बोधिसत्व” के सभी जन्म हमारे लिए आदर्श है। उनका हर जन्म परोपकार व सत्यनिष्ठा का प्रतीक रहा है। इसी जन्म चक्र में एक बार वे कमलों से युक्त तालाब में मछलियों के स्वामी के रूप में अवतरित हुए।

      एक बार दुर्भाग्यवश वर्षा नहीं हुई,जिस कारण वह तालाब नए पानी से नहीं भर सका।इसके बाद ग्रीष्म ऋतू आने पर निरंतर चारों ओर से पानी पिए जाने के कारण वह तालाब सूखकर एक छोटे से पोखर के समान हो गया।  तालाब के किनारे कौए मछलियों को खाने का विचार कर रहे थे। तब बोधिसत्व चिंतित हुए व मछलियो पर आई विपदा से दुःखी हुए।     इस विपत्ति में जब कोई मार्ग शेष नहीं रहा तब बोधिसत्व ने कहा कि मैंने अपने किसी भी जन्म में कठिन परिस्थितियों में भी कभी किसी प्राणी का वध नही किया। मेरे इस सत्य का विचार कर देवराज वर्षा करें।     तब उस महात्मा के पुण्यफलों से तथा सदा ही सत्य पर दृढ रहने के प्रभाव से मूसलाधार वर्षा हुई। मछलियों में प्रसन्नता छा गयी तथा व्याकुल कौए वहॉ से भाग गए।     इस प्रकार चरित्रवान इस लोक में ही नहीं परलोक में भी कल्याणकारी मनोरथों को बढ़ाते हैं। इसलिए हमें हमेशा अपनी चारित्रिक विशुद्धि का प्रयास करना चाहिए।
इस लेख के बारे में आप हमें अपने सुझाव अवश्य दे। यदि यह आपको अच्छा लगा तो कृपया इसे शेयर करें  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *