हम्मीर हठ की पराकाष्ठा

 भारत भूमि वीरों की जन्मभूमि है और भारतीय इतिहास इसका साक्ष्य। भारत में कई प्रकार के वीर हुए हैं यथा- युद्धवीर, दानवीर, दयावीर आदि। और वीरों की श्रृंखला में एक अद्भुत नाम है जिसमें ऐसे सभी गुण विद्यमान थे। “चौहान काल के कर्ण”  दान, दया, क्षमा, युद्ध सभी गुणों से पूरित राणा हम्मीरदेव चौहान। जो अपनी हठधर्मिता के लिए विख्यात है।

भारतीय समाज में तीन हठ प्रसिद्ध है। बाल हठ, स्त्री हठ और हम्मीर हठ। बाल हठ और स्त्री हठ से तो आप भलीभाँति परिचित होंगे। अब हम्मीर हठ की पराकाष्ठा जानने के लिए जानिये हम्मीरदेव की कथा।सम्राट पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद उनके पुत्र गोविंदराज ने रणथम्भौर में अपने राज्य की नींव रखी। इन्ही गोविन्दराज का वंशज था हम्मीरदेव चौहान। इस समय दिल्ली में “ख़िलजी” वंश का परचम लहरा रहा था। और अलाउद्दीन सत्तारूढ़ था।

एक बार अलाउद्दीन के सेनापति उलूगखां की सेना गुजरात विजय के पश्चात पुनः दिल्ली लौट रही थी तब मुहम्मदशाह के नेतृत्व में कुछ मंगोल सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। अलाउद्दीन के क्रोध से बचने के लिए मुहम्मदशाह ने हम्मीरदेव से शरण मांगी। दयावीर हम्मीर ने क्षत्रियोचित धर्म का पालन करते हुए उसे शरण दी व उसे आश्वासन दिया की वो उनके पास सुरक्षित है। इससे अलाउद्दीन हम्मीरदेव से नाराज हो गया। उसने हम्मीर से मुहम्मदशाह को लौटाने को कहा परन्तु हम्मीर देव ने ऐसा करने से मना कर दिया। इससे नाराज अलाउद्दीन ने हम्मीर के विरुद्ध सेना भेजी पर वह विफल रहा। दूसरे युद्ध में  अलाउद्दीन की सेना बुरी तरह परास्त हुई। तीसरे युद्ध में अलाउद्दीन का सेनापति नसरतखां मारा गया। इस पर बौखलाया अलाउद्दीन चौथी बार स्वयं सेना लेकर आया। परन्तु उसे भी सफलता हाथ ना लगी। जब वह वापिस लौटने लगा तो हम्मीर के रायमल्ल व रामपाल नाम के दो मंत्रियों ने विश्वासघात किया व धन और राज्य के लालच में अलाउद्दीन से जा मिले।

अलाउद्दीन की सेना किले को घेरे पड़ी थी। किले में रसद ख़त्म हो रहा था। अलाउद्दीन ने सन्देश भिजवाया कि यदि हम्मीर मुहम्मदशाह को लौटा देता है तो सेना हटा ली जाएगी परन्तु हठी हम्मीरदेव ने अपना वचन अन्त तक निभाया। हम्मीर की रानियों और राजकुमारी देवल देवी ने जौहर की अग्नि में बलिदान दिया और हम्मीरदेव  और उनके वीर सैनिकों ने केसरिया पहन अपने वचन पर प्राण न्यौछावर कर दिए।

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